भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनहर जैविक / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनहर,
जैविक जीवन-धारी
रंग-बिरंगे पंखों वाला
यह कठफोड़वा,
प्रकृति-प्रिया की
शिल्प-सँवारी
अनुपम कृति का छंद है
जो आता है,
मुझको देकर
शिल्प सँवारा छंद,
उड़ जाता है,
मन से कभी न उड़ पाता है,
भाषा भाषी बन जाता है।

रचनाकाल: २९-१२-१९९१