भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मनुक्खक मुँह पर जाबी / नारायण झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केहेन विकट समय भँ गेल
एना केना बदलि गेल लोक
लगैत छल जाबी
माल-मबेशीक थुथुन पर
आब लागि गेल
मनुक्खोक मुँह पर
कलयुगिया मनुक्खक मुँह सँ
आशीर्वाद सधि गेल
छलहुँ जाइत परीक्षा देबय
कि भेटि गेलाह बड़का काका
पएर छूबि गोड़ लगलियनि
कि परीक्षा खूब बनत
हुनकर मुँह घुनघुनयलनि
हम अँखिआइस देखलहुँ
हुनकर मुँह दिस
जय हो-जय हो भेलनि
हमरा भेल एना कियैक
तखन बुझलहुँ
ई छल आशीर्वादक विकल्पमे भनभनाहटि
हमरा लेल हुनका मुँह मे
नहि छल कोनो आशीर्वादक लेश मात्र
हँ....
मोन पड़ल
एहुँ सँ पहिने
बबाजी काकाक मुँहें
सुनने रहियनि गोड़ लगला पर
एहने किछु
जय राम जी की
आ कि जय भगवान
ओ....
बूझि गेलहुँ हम सभटा बात
आब लोक केँ लोकक मुँहे
नहि देल जाइछ आशीर्वाद
केओ छुच्छे मुँह बिदबिदा
केओ मुड़ी डोला, भनभना
केओ गुमेगुम बढ़ि जाइछ आगू
आशीर्वाद आब सधि गेलैक अछि।