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मनुक्ख कतेको बेर मरैए / अविरल-अविराम / नारायण झा
Kavita Kosh से
सभ बुझैए
मरैए लोक
छुटला उपरांत प्राण
मुदा कतेको बेर मरैए मनुक्ख।
जखन नहि बचि पबै छै
लोकक साख
जखन लगै छै
चरित्र पर दाग
जखन लगै छै
कलंकक करिखा
जखन मेटा जाइछ
पुरूषक पुरूषत्व
स्त्रीक सतीत्व।
एकटा मनुक्ख
कतेको बेर मरैए।