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मनुज उम्मीद की कलियाँ खिलाना भूल जाता है / रंजना वर्मा

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मनुज उम्मीद की कलियाँ खिलाना भूल जाता है।
दिखे जो सामने मंज़र सुहाना भूल जाता है॥

बहुत-सी मुश्किलें हैं ज़िन्दगी आसान कब होती
फँसा इनमें मनुज हँसना हँसाना भूल जाता है॥

हजारों बार खुद से ही किया करता कई वादे
मगर जब वक्त आता है निभाना भूल जाता है॥

बहुत आसान होता स्वार्थ की धारा में बह जाना
सदा सदपंथ पर ही पग बढ़ाना भूल जाता है॥

वतन के प्यार में जीना वतन के प्यार में मरना
वतन के वास्ते खुद को मिटाना भूल जाता है॥