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मनुष्य और कुत्तों की दुनिया में / शुभेश कर्ण
Kavita Kosh से
मनुष्य और कुत्तों की दुनिया में
कितनी समानता है!
मैंने रोटी का एक टुकड़ा उछाल दिया
कुत्तों के झुंड में ।
वह कुत्ता
जो बलिष्ठ था
सबसे ज्यादा हृष्ट-पुष्ट था
लोटता था दबंग के दलान पर
गुर्राकर झपट गया सारा ।
बाकी सब कुत्ते
रिरियाकर, दुम दबाकर
कान हिला-हिला
हवा को सूँघ-साँघ
कें-कुँ कर
देखते रहे उसका खाना ।
वह मस्त होकर खाता रहा
चबर-चबर ।
इस तरह मैंने यह जाना
कि कुत्तों की दुनिया में
न्याय ताकत की एक अवधारणा है ।