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मनुष्य की प्रत्याशा में / रंजना जायसवाल
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लुटी-पिटी
विश्वासों
और अपनों द्वारा छली गई
मेरी संवेदना
ज़िंदा है
मनुष्य की प्रत्याशा में
संवेदन शून्य समय में भी