हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मनैं बहली दीखी आवती साथिण के आए लणिहार
साथिण मेरी तड़कै डिगर जागी
ए बीरा एक बै घेरां में जाइए बाबल की धीर बंधाइए
रे उसने रो रो सुजा लई आंख बेटी तै मेरी तड़कै डिगर जागी
ए बीरा एक बै साला में जाइए माइयड़ की धीर बंधाइए
रे उसने रो रो सुजा लई आंख बेटी तै मेरी तड़कै डिगर जागी
मत रोवै बाबुल मेरे दुनिया का योह् सै ब्योहार
मत रोवै मां मेरी बाबली दुनिया का योह् सै ब्योहार
योह् सै जगत में होती आवै