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मनों के बात / परमानंद ‘प्रेमी’

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की कैहौं मिता हम्में मनों के बात
जैहा सें देखी क’ हमरा गेलऽ छै
मऽन व्याकुल जी चटपट भेलऽ छै
रात भर निन नैं आबै छै हमरा
सोचै छी जल्दी सें होय जाय मुलाकात।
की कैहौं मिता हम्में मनों के बात॥
परसूए देखैल’ लड़की गेलऽ छै
अभियो ताक बाबू नैहें ऐलऽ छै
होय जों गेलऽ होतै बातचीत पक्का
ऐगला मंगलऽ रोज चलिहऽ बरात।
की कैहौं मिता हम्में मनों के बात॥
साइकिल, रेडियो, घड़ी हम्में लेबै
सूट-बूट आरो औंगठी बनबैबै
कनियांनी ल’ नथिया गढ़बैबै
सारी ल’ सिलबैबै रेशमी फराक।
की कैहौं मिता हम्में मनों के बात॥
सुनै छिभै चार ठो सारी छै हमरा
कोय-कोय नुंगा पिन्है कोय-कोय घघरा
देखै में एका सें एक छै सब ठो
सभ्भैं से करवै पारा-पारी हम्में बात।
की कैहौं मिता हम्में मनों के बात॥
बिहा करिक’ घऽर जब’ ऐबऽ
गेठ जोड़ी मंदिरऽ में जैबऽ
भोला बाबा से हाथ जोड़ी कहबऽ
बढ़ियां से बीती जाय पहिलऽ रात।
की कैहौं मिता हम्में मनों के बाद॥