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मनोॅ के बात / अनिल कुमार झा

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सोना पर चाँदी रो पानी चढ़ैने
ऐली सिहरली अगहन के रात,
दिन भर कटनी करी के थकै तेॅ
बोलै न पारै छै मनोॅ के बात।
गाँवों सिमाना पर बरद बुढ़वा
रास्ता ताकै छै टुकुर टुकुर,
सिकुड़लोॅ बगुला सोचै छै कन्ने
बगुलियाँ ताकै मुकुर मुकुर,
रात भी अन्हारोॅ से डरली रहै छै
जानै छै बूझै न जात आरू पात,
सोना पर चाँदी रो पानी चढ़ैने
ऐली सिहरली अगहन के रात।
जी जरैनें राखै छै ठंडा
मनोॅ पर मोन-मोन पैनोॅ डंडा
देहे में पेट छै मोॅन छै प्रेम,
ऐकरा जराय के सब हथकंडा
बाते बातोॅ में डांटी-डपटी
मारै गिरावै लातें लात,
सोना पर चाँदी रो पानी चढ़ैने
ऐली सिहरली अगहन के रात।