भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
श्री आंकार जी-
ऊँचो माळो डगमाळ टोंगलया बूड़न्ती जवार।।
काचा सूत की ऊँकार देव की गोफण बणाई...।।
हरमी-धरमी का होर्या-चिरल्या उड़ी जाजो,
ने पापी को खाजो सगळो खेत।।
-ओंकारेश्वरजी का महल ऊँचा है और घुअने डूब जायें, उतनी बड़ी ज्वार है।
कच्चे सूत की आंकारजी की गोफन बनाई। धर्मात्मा लोगों के खेतों के तोते उड़
जाना और पापी का सारा खेत चुग जाना।