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मन्दार-मधुसूदन महिमा / भाग १ / महेश्वर राय

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सुन्दर मन्दर गिरि भेलै रे मथनियाँ सेॅ
मथि-मथि रतन निकालै मधुसूदना।
सुनै छीयै भगत-बछल छीकै विश्वभर
भगता के दुःख दूर करै घूमि घर-घर
नंगे पाँव भगताकन धावै मधुसूदना॥1॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
भगता जे मनधरि पूजै मधुसूदना रे
जगता जे ध्यानधरि ध्यावै दुःखहरणा रे
ताहि घिचि दुःख सेॅ उबारै मधुसूदना॥2॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
रिसि, मुनि ध्यान धरे मन्दर कोटरवा मेॅ
दुःखी जन स्नान करे जल पापहरवा मेॅ
हँसी-खुशी अधम उधारै मधुसूदना॥3॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
बाबा औढरदानी भोला भस्मासुर कै वर देला
मूढ़मति भस्मासुर सेॅ बाबा रे हरान भेला
मोहनी रूप भस्मासुर जलावै मधुसूदना॥4॥

भीम, अर्जुन जैसन पाण्डव सभै शक्तिहीन भैलै
भीष्म, द्रोण गुरूजन सभै चुप साधी गेलै
द्रोपदी के चिरवा बढ़ावै मधुसूदना॥5॥

सुन्दर मन्दर गिरि.....
पूरब पछिमवाँ सेॅ, वन रे नन्दनमा सेॅ
नदिया के धार बहे, चीर रे चानमा सेॅ
ताहि बीच मन्दर सुहावै मधुसूदना॥6॥

सुन्दर मन्दर गिरि...
दक्खिन बाबा बैजुआ के बैजनाथ धाम शोभै
लम्ब-लम्बे लटवा से बासुकी रे मन लोभै
उत्तर दिशि गंगा लहरावै मधुसूदना॥7॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
शंख, चक्र, गदा, पदुम, चारों भुजा मनोहारी
शोभन किरीट मुकुट, कुण्डल, पीताम्बरधारी
हिय चन्द्रहार सेॅ लोभावै मधुसूदना॥8॥

सुन्दर मन्दर गिरि...
शान्ति, क्षमा, प्रेम, दया, धारे दिव्य पुण्य काया
कटि करधनी शोभै, वक्ष मणिमाल भाया
आनन्द अमिय बरसावै मधुसूदना॥9॥

सुन्दर मन्दर गिरि.....
मन्दर के अन्दर छै नारायण शेषशायी
नाभि के कमलवा पै ब्रह्माजी विराजै भाई
लछमी मैया चरण दबावै मधुसूदना॥10॥