भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन्नू जी, नाराज हो? / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन्नू जी, मन्नू जी, क्या नाराज हो?
तुम तो भैया, हम सबके सरताज हो!
फिर क्यों मन्नू जी, इतने नाराज हो?

मन्नू जी, अब आओ न, संग-संग खेलो,
आगे बढ़कर बाँहों में बाँहें ले लो।
मन्नू जी, हर मुश्किल को पीछे ठेलो,
मन्नू जी, हर बाधा को हँसकर झेलो।

भूलो सारे दर्द-तराने, मन्नू जी,
भूलो सारे गीत पुराने, मन्नू जी।
मत लेटो अब लंबी ताने, मन्नू जी,
उठकर चल दो फिर कुछ पाने, मन्नू जी।

ठीक करो सब ताने-बाने, मन्नू जी,
ताजा कर लो फिर पहचानें, मन्नू जी।
थोड़ा खिल-खिल हँस दो, प्यारे मन्नू जी,
तारों के संग नाचें तारे, मन्नू जी।

पता नहीं इन बातों में क्या राज हो?
मन्नू जी, मन्नू जी, क्या नाराज हो?