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मन्दिर की सीढियां / सुभाष काक
Kavita Kosh से
१
मेरे समछाया के आंगन में
पपीहे ने पहला गान किया।
२
मालूम नहीं कहां से यह गीत
धरती पर गिर आया।
३
मचान से देखते
बाघ कितना सुन्दर लगता है।
४
तितली मेरे हाथों में
देखते देखते मर गयी।
५
देखो! पर्वत
कम्बल के नीचे सोया है।
६
पुष्प खिले
दूसरे दिन
हिमपात हुआ।
७
मैं फूलों को
चुनना नही चाहता
पर घर कैसे लौटूं
चुने बिना।
८
पता नहीं किन फूलों की
सुरभि फैल गई
आंगन में।
९
बादल कभी कभी
चान्द को ढक लेते हैं
ताकि हमारी निहारती आंखें
थक न जाएं।
१०
देखो इस पत्ते से गिरका
जलबिन्दु
कैसे विभाजित हुआ।
११
पपीहे की चीख सुनकर
मुझे स्वर्गवासी दादा की
याद आई।
१२
चान्द की कितनी
समदृष्टि है।
१३
नववर्ष के उत्सव के लिये
मेरे पास नव वस्त्र कहां?
१४
ओठ ठिठुरते हैं
इन हवाओं में।