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मन-मस्तिष्क सितार हो गए / श्याम नारायण मिश्र
Kavita Kosh से
तुमने
नेह-नज़र से देखा
सब अभाव अभिसार हो गए ।
मनु के
एकाकी जीवन में
श्रद्धा के अवतार हो गए ।
हर मौसम
वसंत का मौसम
रात चाँदनी रात हो गई ।
काँटों के
जंगल में जैसे
फूलों की बरसात हो गई ।
जब से
छेड़ दिया है तुमने
मन-मस्तिष्क सितार हो गए ।
तुमने नेह-नज़र से देखा
सब अभाव
अभिसार हो गए.
मनु के एकाकी जीवन में
श्रद्धा के
अवतार हो गए ।