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मन-मोहन के दृग की गति तौ / सुन्दरकुवँरि बाई
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मन-मोहन के दृग की गति तौ मन संग लै घूँघट की ठगई.
लखि सास लखात किशोरी लजात सु भौंहैं कछू इतरान ठई॥
इतरानहिं की ललचान इतै लगि छूटन नैनन आव पई.
रहि कान्ह का लाजहि रीझि गई इनहूँ ते वहै रिझवारि भई॥