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मन.. / अर्जुनदेव चारण
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बेटी
खोलती है घर का दरवाजा
पीढ़ियों का मार्ग
भविष्य की अर्गलाएं
पर
कभी नहीं खोलती
अपने मन का द्वार।
अनुवाद :- कुन्दन माली