मन अघोरी 
घोर ध्यानम 
ध्यानम बैठ्युं ब्रम्ह। 
ईं कूड़ी की 
द्वर ढकि लगीं जै 
प्यटि प्याट यन स्वचणू भै 
यखी म्यारु भि 
मरघट ह्वे जा 
मोरी जा म्यारु अहम्। 
अहा !
नाम धाम की बिज्वाड़ औंगिरगे 
अर तृष्णा -हिरुलि 
तेरी जलुडी घाम लगिंगे 
य दुनिया ह्वेगे ऐसी तैसी 
वेकु , वासुदेवः सर्वम्।