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मन आँगन में तुलसी तेरी यादों की / रविकांत अनमोल
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मन आँगन में तुलसी तेरी यादों की
ख़ुशबू कितनी रोज़ बिखेरी यादों की
ग़म की तीखी धूप में ढाँपे रहती है
मेरे दिल को छाँव घनेरी यादों की
तेरे पास ख़ज़ाना तेरी यादों का
मेरे पास है पूँजी मेरी यादों की
इस दुनिया से दूर बसाई है मैंने
एक अलग ही दुनिया तेरी यादों की
तेरे नूर के दम से रौशन है वरना
बस्ती होती आज अन्धेरी यादों की
याद रहा तो याद रहा इक वो चिहरा
बाक़ी गलियाँ सूनी मेरी यादों की