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मन करता है / सुशीला पुरी
Kavita Kosh से
मन करता है
देखती रहूँ तुम्हें
सुनूँ खूब देर तक
और सो जाऊँ सुनते-सुनते
बूँद की तरह
घुल जाऊँ
तुम्हारी प्यास के समुद्र में
मन करता है
छूकर तुम्हें
बिखर जाऊँ चाँदनी की तरह
तुम्हारे वजूद के आसमान में
भर लूँ तुम्हें
अपनी श्वास के गेह में
आत्मा के शिल्प की तरह
रच लूँ तुम्हें अपनी देह में
चलो
दुनिया से दूर कहीं बैठें
और टकटकी लगाकर
ताकें एक-दूसरे को
मन करता है
लिख दूँ तुम्हें
सारी लिपियों
सारी भाषाओं में
टाँक दूँ नाम तुम्हारा
चाँद के बिल्कुल बीचों-बीच ,
क्या करूँ मैं इस मन का ?
जो हर लम्हा
तुम्हारी सुगंध से
भीना रहता है।