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मन का आंगन / राकेश खंडेलवाल
Kavita Kosh से
भित्तिचित्र से सजी अजंता, घिरा घटाओं से है सावन
और तुम्हारी छिव से चित्रित, मीत मेरे मन का है आंगन
संध्या की निंदियारीं पलकें,
ऊषा की पहली अंगड़ाई
दोपहरी की धूप गुनगुनी,
रजनी की कोमल जुन्हाई
बगिया में भ्रमरों का गुंजन,
नदिया की धारा की कल कल
गंधों की बढ़ती मादकता,
पुरबा की अठखेली चंचल
बन कर गीत तुम्हारे गूंजे, मेरे मन पर ओ जीवन-धन
और तुम्हारी छवि से चित्रित मीत मेरे मन का है आंगन
बरगद पर लहराते धागे,
जले दीप पीपल के नीचे
सपीर्ली भटकी पगडंडी
दिशा दिशा में आंखें मीचे
पनिहारिन के पग की पायल,
संध्या के नयनों का काजल
फूल फूल पर दस्तक देता
तितली का सतरंगा आंचल
सब पर किए हुए हस्ताक्षर एक तुम्हारी मोहक चितवन
और तुम्हारी छवि से चित्रित मीत मेरे मन का है आंगन