भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन का दिया दिया है तुमको इसे जलाये रखना / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन का दिया दिया है तुमको इसे जलाये रखना
कितने आँधी तूफ़ां आयें हाथ मिलाये रखना

कुछ भूली बिसरी यादें हैं अरमाँ सपने हैं
सूख चलीं हसरत की कलियाँ इन्हें खिलाये रखना

यूँ तो राज़ छुपा लेने की आदत तुमको छलिया
लेकिन हम से मन के सारे राज़ बताये रखना

मौन सदा गत रहता है कभी नहीं चुप होता
उसे हमेशा तनहाई के गीत सुनाये रखना

अरमानों की गगरी जमुना तीरे छलक रही है
कृष्ण कन्हैया बन राधा से प्रीत निभाये रखना

राम नहीं हैं यहाँ की जो दशकंधर को मारेंगे
सीता की तुम ही रावण से लाज बचाये रखना

तुमने बहुत दिया हमको हम ही कुछ सौंप न पाये
खुशबू अमर प्यार की चारो ओर बसाये रखना