मन का वहम / सुन्दर नौटियाल
उनसत्तर में चाँद पर कदम रखा है मनखि ने,
परखनली में बच्चे को जनम दिया है मनखि ने;
मंगल तक पहुंच गये औरों पर जाने को तैयार है,
जल, थल, आकाश में कदम रखा है मनखि ने |
तु आज भि चान्द-सुरज नवग्रहों से डर रहा,
यही डर दिखा-दिखा क्वे जाने क्या-क्या कर रहा,
न क्वे ग्रह की दशा से न राहू-केतू से मर रहा;
मनखि उब जाणा की सोच रा, तु उन्द्घोर कर रहा |
सोचा तुमुतैं छै बजे का बाद भूत छली जांदू,
तुमारी पीड़ा दुरु कनक भेड़-बकरी की बलि चांदू;
देवभूमि का रैबासी तुम, तुमारा त पूज्यां छ हि,
सड्कियों-जंगलों मा सियां बिहारी-नेपाळयों क्या खान्दू ?
बचपने सी औतरा-औतरी थौलु-घडयालु देखणा हम,
कुड़ा-पुन्गडों का ओड़-छोड़ सेतू-कालु देखणा हम;
मनमा इतना गैरा बसैली हमुन विचार ये,
रात भूत का डर द्य्व्तौं, अंख उज्याल देखणा हम |
इकुला बण मा छिबडाट ह्वे त छचक के छल्या गये,
नर्सिंग, भैरू, आचरी-मातरी द्य्ब्ता क्त्क्या आ गये;
थोड़ा त सोचो ! दिखा न जब क्वे खान्दरा न जान्दरा,
भितर के भैम निकालने को सब तुझे फतक्या गये |
क्या दुनियां मा तुमारा अलावा क्वी बिमार होता नी?
क्या जख द्य्ब्ता आता नी तख, जिन्दा कोई रौता नी ?
नई-पुराणी बीमारी के कतक्या इलाज खोजे गये;
तुम गढ़वल्यों पर दवाई का क्वी असर होता नी !
न भूत न पिशाच क्वी, यु सब चक्रचाल छा,
भोला-भाला मनखि लुटण को फेंका हुआ जाळ छा,
न क्वे बाबा महान छ न क्वे ढून्गों भगवान छ;
सत्ता कु, पखान्ड्यों को, अंधविश्वासों कु जंजाल छा |
बचानी ही है तुम्हे तो संस्कृति अपड़ी बचाओ ना,
हरी-भरी, डांडी-कांठी, डाली-बुटली लगाओ ना,
पेड़-पाणी पूजो अपना, साफ-सफाई रखो न,
मेल-मिलाप बना के रखो, दुःख-सुख बंटाओ ना |
मनखि के मन में यहाँ मनखि की लिए प्यार हो,
मनखि में ही देवतों-भगवानों का अवतार हो,
सबका सुख, विकास सबकू, सबका उत्थान हो यहाँ;
जांचा-परखा ज्ञान ही विश्वास का आधार हो |