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मन किसी का दर्द से बोझल न हो / प्राण शर्मा
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मन किसी का दर्द से बोझल न हो
आँसुओं से भीगता काजल न हो
प्यासी धरती के लिए गर जल नहीं
राम जी ऐसा भी तो बादल न हो
हो भले ही कुछ न कुछ नाराज़गी
दोस्तों के बीच कलकल न हो
ये नहीं मुमकिन कि वो आएँ इधर
और इस दिल में कोई हलचल न हो
धूप में राही को छाया चाहिए
पेड़ पर कोई भले ही फल न हो
आया है तो बन के जीवन का रहे
ख्वाब की मानिंद सुख ओझल न हो
जा रहे हो झील की गहराई में
और कहते हो कहीं दलदल न हो
पूछकर आती नहीं कोई बला
इतना भी खुशियों पे तू पागल न हो