मन की बात... / कुसुमाकर, सतीश
श्री महावीर प्रसाद ‘मधुप’ एक उच्च्कोटि के हिन्दी पद्य रचनाकार रहे हैं। वे काव्य की किसी एक विधा से बंधे हुए नहीं रहे हैं अपितु उन्होंने अपनी कवितओं में विविध प्रकार के छंदो का प्रयोग किया है। जिनमें गीत, ग़ज़ल, कवित्त, सवैया, दोहा, श़्याल आदि प्रमुख हैं। आपके जीवनकाल में आपकी रचानाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं किन्तु पुस्तक रूप में कोई कृति प्रकाशित नहीं हो सकी। आप स्वान्तः सुखाय ही काव्य-रचना करते थे।
उनके देहांत के पश्चात् उनकी रचनाओं के प्रकाशन की बात हमारे मन में उठी किन्तु कविता का अल्पज्ञान इसमें बाधक बना रहा। कई बार परिवारिक मित्रों वे हितैषियों श्री नरेन्द्र जीत सिंह रावल, डॉ.सारस्वत मोहन ‘मनीषी’ एवं श्री राजेश ‘चेतन’ ने इस पुनीत कार्य के लिए हमें प्रेरित किया। उनके वांछित सहयोग से ही हम इन रचनाओं के प्रकाशन का साहस जुटा पाए। इस पुस्तक के बाद अन्य रचनाओं को भी पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का प्रयास किया आरंभ होगा।
जन्मदायिनी माँ से बढ़ कर इस जगतीतल पर कोई दूसरा पूजनीय व वंदनीय नहीं है, इसलिए यह पुस्तक ‘माटी अपने देश की’ ममतामयी माँ को ही समर्पित है।
जाग स्वयं को थपकी दे दे हमें सुलाती,
भूखी रह अधपेट, पेट भर हमें खिलाती।
पालन करती जो छाती का रक्त पिलाकर,
समझो यह सुंदर तन है उस माँ की थाती।।
कुसुमाकर एंव सतीश