मन की बात अधूरी है / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'
जाने कितनी कविता कह दी, जाने कितने गीत गा लिए,
लेकिन अब तक मन की बात अधूरी है।
जितना अनुभव किया आज तक, उतना व्यक्त न कर पाया हूँ।
कुछ मुस्कानें मिली कर्ज़ में, केवल आहें भर पाया हूँ।
जितने बादल उठे हृदय में, उतने अश्रु बहा डाले हैं।
लेकिन अब तक नयनों की बरसात अधूरी है। 1.
बचपन की सतरंगी दुनियाँ, यौवन में अनजान हो गई।
जब से तुम आए जीवन में, पीड़ा से पहचान हो गई।
तुमने मुझको मावस दी है, मेरे चाँद सितारे लेकर,
लेकिन अब तक पूनम वाली रात अधूरी है।
मेरा मन बनजारा बनकर, गाँव गांव में भटक चुका है।
मेरा गीत भिखारी है जो, द्वार-द्वार सर पटक चुका है।
दिन ने ताप दिया सूरज का और रात ने शबनम दी है,
लेकिन अब तक सपनो की सौगात अधूरी है।
मेरी पीर बाल विधवा है, लगन लगा बैठी जीवन से।
आँखों में सब कुछ दे डाला, फिर भी दूर रही है तन से।
साँसों ने श्रिंगार कर दिया, ममता ने मेंहदी रचवादी,
लेकिन अब तक आने को बारात अधूरी है।