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मन की भावभूमि पर स्वप्नों का त्यौहार मने / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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मन की भाव भूमि पर
सपनों का त्यौहार मने॥

जब सुदूर से उड़ कर
आये परी कल्पना की
इंद्र धनुष की किरणें
हों तस्बीर अल्पना की।

कुहू कुहू कह प्रणय -
कोकिला वन गुंजार बने॥

उड़े अकेला चन्द्र गगन
ज्यों पाटील पुष्प खिले
जगमग तारे बेला के
पुष्पों का हार गले।

मधुर कल्पना रचे रंगोली
नव संसार बने॥

प्यास बहुत गहरी है
लेकिन सागर जल खारा
लक्ष्य अटल हिमगिरि जैसा
संकल्प नहीं हारा।

कूप सरोवर पिरो श्रृंखला
नयी कतार बने॥

सांसें रुकने लगीं मृत्यु के
यों उपदान मिले
वसुधा हो फिर हरित
तभी जीवन सन्धान मिले।

दूर क्षितिज के परे कहीं
सुख का संचार बने॥