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मन की संसद / ध्रुव शुक्ल

सुख में सुमिरन
दुख में सुमिरन
करने वाले बदल गए
कारण सुख के बदल गए
कारण दुख के बदल गए
मन की संसद
मन की सत्ता
संविधान को करे निहत्था
मन का चोर पकड़ने वाली
पुलिस कहाँ से आये
हमने अवगुन के गुन गाये