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मन के गीतों को भी लोग सुनें / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
जितने गीत अधर पर आये उनको सभी गुनें।
मन करता है-मन के गीतों को भी लोग सुनें।
माना गीतों में सब कहना
संभव होता है।
मगर वही कह पाता जिसको
अनुभव होता है।
अपना तो अनुभव है थोड़ा कैसे शब्द चुनें।
मन करता है-मन के गीतों को भी लोग सुनें।
यों तो गाँवों-शहरों में हम
जहाँ-जहाँ पहुँचे।
हमसे पहले गीत हमारे
वहाँ-वहाँ पहुँचे।
फिर भी लगता-हम गीतों की चादर और बुनें।
मन करता है-मन के गीतों को भी लोग सुनें।
जो कुछ भी हम कहना चाहें
वो सब कह डालें।
रहते हुए धरा पर नभ की
ऊँचाई पा लें।
धरती से अम्बर तक गूँजे अपनी गीत धुनें।
मन करता है-मन के गीतों को भी लोग सुनें।