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मन के मांगल गीत / शिव मोहन सिंह

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अपने पंख समेट रही है,
हिम-शिखरों की शीत।
अधरों पर आकर छलके हैं,
मन के मांगल गीत ॥

'फूलों की घाटी' उतरी है,
कानन- कानन में ।
बाँट रहे ऋतुराज निछावर,
आँगन- आँगन में ।
कंण- कंण में उत्सव रचता है,
कलरव में संगीत ॥

पीले हाथ हुए हैं , मौसम
में ,हरियाली के ।
पात - पात पर मन लहराए,
दिन ख़ुशहाली के ।
माँ के आँचल में निधियाँ सब,
घर-घर में नवनीत ॥

मधुकर मधुरस ढूँढ रहा है
मधुमय कलियों में ।
ख़ुशबू संग मुनादी करती
पुरवा गलियों में ।
नयनों के संवाद बनाते
अपने मन की रीत ॥