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मन खोया-खोया है / रामानुज त्रिपाठी
Kavita Kosh से
नेह के
घरौंदे में सोया है
मन खोया-खोया है।
आस-पास
चुप्पियों का
एक काफिला ठहरा,
पलकों में
कोई संकोच
दे रहा पहरा,
अधरों पर
एक मौन बोया है।
मन खोया-खोया है।
धुंधलाए
सपनों ने
धूमिल यादों ने,
हाथों में
हाथ सौंप
किये हुए वादों ने,
अथाह
झील में डुबोया है।
मन खोया-खोया है।