भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन चले / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
तेरे-मेरे-सब के
मन माने की बात
मन चले तो मनचले
...मौन मन मलीन !
मन के हारे
हार कथी सब ने
जीते मन ;
दौड़ाया जब भी जिस ने
उस के हाथ लगी
हार हर बार !
मन मेँ बसते
कितने सपने
कितने अपने
पालूं चाहत
सब से हो
साक्षात मिलन
इस उपक्रम मेँ
क्या मानूं जीत
क्या मानूं हार !
तेरी जीत-मेरी हार
मेरी जीत-तेरी हार
किस की जीत
किस की हार
होता साक्षात्कार
सब मन माने की बात !