भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन तुम मलिनता तजि देहु / जुगलप्रिया
Kavita Kosh से
मन तुम मलिनता तजि देहु।
सरन गहु गोविंद की अब करत कासो नेहु॥
कौन अपने आप काके परे माया सेहु।
आज दिन लौं कहा पायो कहा पैहौ खेहु॥
विपिन वृंदा वास करु जो सब सुखनि को गेहु।
नाम मुख मे ध्यान हिय मे नैन दरसन लेहु॥
छाँड़ि कपट कलंक जग में सार साँचो एहु।
‘जुगल प्रिया’ बन चित्त चातक स्याम स्वाँती मेहु॥