Last modified on 30 अगस्त 2014, at 14:45

मन न हुए मन से / देवेन्द्र कुमार

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से ।

तुमसे-उनसे
मेरी निस्बत
क्या-क्या बात हुई ।
अगर नहीं, तो
फिर यह ऐसा क्यों ?
दिन की गरमी
रातों की ठण्डक
चायों की तासीर
समाप्त हुई
एक रोज़ पूछा निज दर्पन से ।

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से ।