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मन बिधुन होगे करिया / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
सुन-सुन के तोर बंसुरिया, मन बिधुन होगे करिया।
करिया संग उज्जर होवय मन, तोर मया म लहरिया॥
पुत्री के निरमल, रतिहा तैं रास रचाए।
सुग्घर चंदा अंजोरी कस मया बगराए॥
बंसी के आरो सुन, नींद उचटे अधरतिया।
मन बिधुन होगे करिया॥
सुरता म तोर अनपानी, कुछुच न सुहाय,
का जुगती-मोहनी डारे, समझ नई आय।
रद्दा रेंगत बीच बाट, लूटे दही के गगरिया।
मन बिधुन होगे करिया।
बंसी मन माढ़े रहितेंव तोर अधर म,
काबर झूलत रहिथस, तैंहा नंजरे नजर म।
तन-मन म समाय रहिथे, तोर मोहनी मुरतिया।
मन बिधुन होगे करिया।
सरबस रंग जतेंव तोर, मया के रंग म
छईहा बन गिंजरत रतेंव, तोर संगे-संग म।
तोर चरन-सरन परेहँव, करो किरपा साम सँवरिया।
मन बिधुन होगे करिया।