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मन भवरा तो लोभीया / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    मन भवरा तो लोभीया,
    आरे माया फुल लोभाया
    चार दिन का खेलणा
    मीट्टी में मील जाणा...
    मन भवरा...

(१) ऊंग्यो दिन ढल जायेगा,
    फुल खिल्या कोमलाया
    चड़याँ हो कलश मंदिर म
    जम मारीयाँ हो जाय...
    मन भवरा...

(२) कीनका छोरा न कीनकी छोरीया,
    कीनका माय नी बाप
    अन्त म जाय प्राणी एकलो
    संग म पुण्य नी पाप...
    मन भवरा...

(३) यही रे माया के हो फंद को,
    भरमी रयो दिन रात
    म्हारो-म्हारो करत मरी गयो
    मिट्टी मांस का साथ...
    मन भवरा...

(४) छत्रपति तो चली गया,
    गया लाख करोड़
    राज करंता तो नही रया
    जेको हुई गयो खाक...
     मन भवरा...

(५) पींड गया काया झरझरी,
    जीनका हुई गया नाश
    कहत कबीरा धर्मराज से
    निर्मल करी लेवो मन...
    मन भवरा...