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मन भावण सावण आय गयो / मनोज चारण 'कुमार'

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दोहा

सावण री झड़ लग रही, घटा चढ़ी घणघोर।
भांग धतूरा घुट रिया, चिलमां चढ़गी जोर।१।
सावण मनभावण हुयो, खूब सजै दरबार।
शिवजी रो महिनो बड़ो, हो री जै जै कार।२।

सवैया

जय हो शिव शंकर नाथ प्रभो, मन भावण सावण आय गयो।
जय हो तुमरी नटराज घणी, मन भांग धतूर चढ़ाय रयो।
निमळी जळधार बहै नित री, शिव सावण धूम मचाय रयो।
कर जोङ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।१।

तुम मार दियो गज दानव नै, अर चाम लपेट लियो तन मैं।
गज-अंबर ओढ़ लियो शिवजी, करदी मुगती छिन-ही-छिन मैं।
गजअंतक नाम भयो तबही, सब ही जन कूं समझाय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।२।

धरती पर बोझ बढ़ै जबही, तबही शिव शंकर नाच रचै।
जद तांडव नाच नचै शिवजी, डमरू बजतो डणणाट जचै।
सटकार सुणै जद सिंगट री, फटकार जटा बिखराय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।३।
              
नरसिंघ भयो बिकराळ जबै, सब देवन मांहि भीड़ पङी।
बिणती करके सब हार गया, कमला तब धूजत दूर खड़ी।
तब शारभ रूप लियो शिवजी, अर ले असमान उड़ाय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।४।

धरती करियो सिणगार अबै, गहडंबर गाज रियो नभ मैं।
तुमरी भगती करती जगती, सगती तुमरी अणपार रही।
तुमरे बळ घूम रहे सुरजी, लख तारक घूमत शेष मही।
तुमरे बळ घूम रहे जग में, शिव शंकर यूं हि घुमाय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।५।

चिलमां चटकार लगै तकड़ी, महकार उठी जबरी जग मैं।
शिव शंकर पीकर भांग अबै, भगतां मन मांहि लुभाय रयो।
कर जोङ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।६।

जद सावण री झड़ आय लगै, धरती नवलो सिणगार सजै।
जय बोल सदाशिव शंकर की, डणकै डमरू घड़याळ बजै।
जळधार चढ़ै रसधार चढ़ै, जण दूध घणेर चढ़ाय रयो।
कर जोङ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।७।
                     
विरतासुर दानव धूम करी, अघ पाप घणूं पसरो जग मैं।
वध तो करसी शिव पूत कभी, वरदान लियां फिरतो मग मैं।
शिव शंकर रो मन फेरण नै, रतिनाथ घणूं ललचाय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।८।
              
रतिनाथ सजाय लियो धनवां, सर पुष्प घणां बरसाय रयो।
मुधरो मतवाळ समीर बहै, मन काम घणूं हरसाय रयो।
शिव शंकर री जद आंख खुली, तब काम उभो झुळसाय रयो।
कर जोङ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।९।

तुम तीन त्रिलोक चलावत हो, भवसागर पार लगावत हो।
हमरी विणती सुणलो शिवजी, तुम ही बस आश पुरावत हो।
भव भीम महाशिव शंकरजी, तुमरो जस बाळक गाय रयो।
कर जोड़ करै अरदास सदा, गुण गाडण गीत सुणाय रयो।१०।

दोहा

शंकर भोळानाथ रै, चरणां लिज्यो ठौड़।
भवसागर पळ मैं तिरै, अरज करूं कर जोड़।१।
सावण गावण जोड़िया, टूट्या-फूट्या छंद।
मैं मधुकर हूँ नाथ रो, शंकर है मकरंद।२।
शंकर दीनानाथ रा, गुण गावूंला रोज।
नाथ मैं चरणां पड़्यो, गाडण कवि मनोज।३।