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मन मंदिर पर ताले / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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एक ओर है सघन अँधेरे एक ओर उजियाले हैं।
दोनों ही अनन्त है, दोनों जीवन के रखवाले है।
अपने अपने राग रंग हैं अपनी अपनी माया है
कुछ कुछ दिल सबके सफेद हैं कुछ कुछ सबके काले हैं।
कहीं जयाले जाते दीपक कहीं बुझाये जाते हैं।
शुभ है याकि अशुभ है यह तो भ्रम हमने ही पाले हैं।
इनसे कभी न नाता जोड़ो ये निर्मोही निठुर बड़े
ये बन्जारे यादों के हैं आने जाने वाले हैं।
ओढ़ी हुई कबीरी पंकिल पंकिल झीनी चादर है,
उत्तर काण्ड सफेद सखे ! पर प्रश्न काण्ड अति काले हैं।
आज फकीरी बनी हुई है इत्कम का अन्दाज नया
झोली डण्डा लिये हाथ में कोठी बँगला वाले हैं।
बाहर तो सत्संग निरन्तर मन्त्रपूत होता रहता,
पर कैसे घनश्याम पधारें मन मन्दिर पर ताले हैं ?