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मन मारा मारा फिरता है (जन गीत) / सुनीता शानू

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मन मारा मारा फिरता है
दो पग चलता है गिरता है।
धरती की संतति है फिर भी
दुख के सागर से घिरता है।
 यह हूक मिटाने की खातिर
 कोई शिल्पकार यहाँ आएगा।
 और पथरीले इस जीवन को
 नंदन वन सा महकायेगा।

इक राजा ने सपनें मे अपने
राजपाट का दान किया।
जब जागे तब रानी ने
उस निर्णय का सम्मान किया।
 बेटे का शव न डिगा पाया
 उनको तो कर पहुंचाना था।

 वह पुत्र शोक में व्याकुल थी-
 पर पत्नी धर्म निभाना था।
आँखों में आँसू भरे हुए-
रानी ने उनका मान रखा
पर बोलो! किसने उस माँ की
भावनाओं का ध्यान रखा।
 यह हूक मिटाने की खातिर
 कोई शिल्पकार यहाँ आयेगा
 और पथरीले इस जीवन को-
 नंदन वन सा महकायेगा।

इक नारी फिर से छली गई
पत्थर बनने को मजबूर हुई
एक पुरूष के साहस से-
आकुलता मन की दूर हुई
 पर उसी पुरूष ने नारी पर
 अन्याय एक था कर डाला
 अग्नि की ज्वाला सा उसने
 फिर अविश्वास सा भर डाला

इस अग्निपरीक्षा में नारी को
सचमुच का वनवास मिला
जिससे संबल की आस रही
ये दर्द उसी के पास मिला
 यह हूक मिटाने की खातिर
 कोई शिल्पकार यहाँ आयेगा
 और पथरीले इस जीवन को
 नंदन वन सा महकायेगा।

इक नारी ने इक नारी को
अपने बेटों में बाँट दिया
बेटो ने फिर उस नारी को
पासो में धन सा छांट दिया
 उन बेटो ने ही जब नारी का
 सम्मान दांव पर लगा दिया
 फिर भरी सभा में उस नारी का
 पुरुषों ने ही अपमान किया।

उस नारी ने कुछ प्रश्न किये
पर उत्तर कोई न दे पाया
वे प्रश्न आज भी जीवित हैं
पर थाह कोई न ले पाया।
 यह हूक मिटाने की खातिर
 कोई शिल्पकार यहाँ आएगा।
 और पथरीले इस जीवन को
 नंदन वन सा महकायेगा।

सब कहते है ये दौर नया
इस दौर की हर बात नई।
पर पहले सी है एक बात
नारी की पीड़ा नही गई।
 अब भी लोलुप आँखों का वो
 भरपूर निशाना बनती है।
 बातें करने वालों में वो-
 हर बार फ़साना बनती है।

जिस देश में नारी की इज्जत
“माँ” कह के सँवारी जाती है
उस देश में पैदा होने के
पहले वो मारी जाती है।
 यह हूक मिटाने की खातिर-
 कोई शिल्पकार यहाँ आयेगा
 और पथरीले इस जीवन को
 नंदनवन सा महकायेगा।