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मन रात दिन इस सोच में ग़लत रहा / रंजना वर्मा

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मन रात दिन इस सोच में गलता रहा।
क्यों वक्त हमको बेवजह छलता रहा॥

जब जब तिमिर के युद्ध का उद्घोष हो
संकल्प ले नूतन दिया जलता रहा॥

अन्याय पर चल ही न वश पाया कभी
आक्रोश मन में ही मगर पलता रहा॥

जिसने किया कर्तव्य का पालन सदा
उसको सुफल निज कर्म का मिलता रहा॥

पहुँचा गया क्षति दूसरों को इसलिये
अपना किया भी कर्म वह खलता रहा॥

करने लगा जग के उजागर दोष तो
नित सूर्य उग आकाश में ढलता रहा॥

बैठा रहा कायर सदृश श्रम छोड़कर
निष्फल निरर्थक हाथ वह मलता रहा॥