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मन री आर्ट-गैलेरी में / सांवर दइया
Kavita Kosh से
थारै चेहरै माथै देखण खातर
अगूण में पसरतो उजास
आडी-टेढ़ी बातां कैवूं म्हैं
कणाई-कणाई
आ तो म्हारी आदत है
एकर फीसै तूं
मनायां मुळकै
आंसू पूंछती लुकै सीनै में
हाथां रै बीं सागी लटकै सागै
-आछी आदत है !
इणी लटकै लारै गैलो म्हैं
अजै टांग राख्यो है
मन री आर्ट गैलरी में
थारो ओ चितराम !