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मन री बींदणी / आशा पांडे ओझा
Kavita Kosh से
इयान तौ
घणी, छाकटी, आकरी
अर समझणी है
आ दिमाग री डौकरी
मन री बींदणी नै
पूरी बस में राखै
बरजती ई रेवै
मनमानी करण सूं
अठी-उठी भटकण सूं
घर री बात बारणै कैवण सूं
राखै भी है इण बीनणी नै
पूरी ढक-ढूंब ‘र
पण थोड़ी भोळी मरै
या मन री बींदणी
या इयां कैलो ‘क थोड़ो ‘क टाबरपणौ है
लुक-लुका ‘र छानै-छुरकै
कदै कदास तो डोकरी सूं लड़-लड़ ‘र ई
कर लैवै है या बींदणी
चित चायौ।