मन रे, तू ही बता क्या गाऊँ
कह दूँ अपने दिल के दुखड़े
या आँसू पी जाऊँ
जिस ने बरबस बांध लिया है
इस पिंजरे में क़ैद किया है
कब तक मैं उस पत्थर दिल का
जी बहलाती जाऊँ
मन रे...
नींद में जब ये जग सोता है
मैं रोती हूँ, दिल रोता है
मुख पे झूठी मुस्कानों के
कब तक रंग चढ़ाऊँ
मन रे...