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मन वाचस्पति / पद्मजा बाजपेयी

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आश की जीवन संगिनी जानिए मुझे,
नाम पद्मजा कहते ज्योति है मुझे।
दोस्ती हमारी पूरानी है,
हर पल नई कहानी है,
प्रारम्भ से ही लगनशील,
पढ़ाई के प्रति अति गम्भीर।
बचपन छूटने से पहले ही,
छूट गया घर दूर बहुत दूर,
इंदौर शहर ने इन्हे युवा बना दिया,
पुरानी यादों को बरबस भुला दिया।
राह में जो भी मिला, सब बेगाने मिले,
किसे अपना बनाए, इसी के दीवाने बने,
मन के सकून को एक राह मिल गई,
कागज और कलम में ही ज़िन्दगी उतर गई।
माता-पिता परिजनों ने आशीर्वाद दिया,
प्रयाग राज में हमारा पाणिग्रहण हुआ।
छोटा-सा नीड़ इसमे दो पक्षी,
नंदानगर से हमारी शुरू हुई ग्रहस्थी।
हमारी बगिया में दो सुन्दर फूल खिल।
नीति औए आलोक दो अनमोल हीरे मिले।
पिता के प्यार ने उन्हें सजा-संवार दिया।
अच्छे नागरिक बने इसका पूरा प्रयास किया,
साथ ही मेरे आश की प्रतिभा,
एक के बाद एक बाहर आने लगी।
यूको बैंक में कर्मचारी से अधिकारी।
सभी लाभों में बराबर की हिस्सेदारी,
यूनियन में धमाकेदार शुरुआत,
अच्छे-अच्छे खा गये मात।
हिन्दी सेवा में सदा तत्पर,
भीगी पलकों के नीचे चलता अबाध सफर,
कुच्छ चुनिंदा गीत-गजलों ने रूप पाया,
बिना किसी फर्क के ' सभी ने अपनाया।
भाषा प्रेम ने हिन्दी परिवार को जन्म दिया,
छोटा-सा पौधा अब विशाल वृक्ष बन गया।
मंच पर चढ़ते ही आप वाचस्पति बन जाते हैं।
सुनने वाले हैरान, कब क्या, कैसे बोल जाते है?
मानव सेवा, प्रभु सेवा से बड़ी है,
'आश' की सफलता की महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
पीछे मुड़कर आपने कभी नहीं देखा,
क्या खोया, क्या पाया, इसका नहीं लेखा-जोखा,
कर्म ही उद्देश्य जिनका,
सभी अपने, कोई न पराया उनका।
ऐसे आदर्श महानुभाव को नमन है मेरा,
उनकी हर जीत पर, कुछ तो हक है मेरा।