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मन व्याकुल हो तुझे पुकारे आ जा नन्ददुलारे / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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मन व्याकुल हो तुझे पुकारे आ जा नन्द दुलारे॥
गगन गली में तृषित पपीहा
द्वार द्वार डोले,
पियूँ कहाँ पी कहाँ पी कहाँ
बार बार बोले।
तेरे बिना कठिन है जीवन सुन राधा के प्यारे।
मन व्याकुल हो तुझे पुकारे आ जा नन्द दुलारे॥
प्यास अमर हो गयी कण्ठ में
रहा प्राण प्यासा ,
नहीं टूटती स्वाति बूँद की
है फिर भी आशा।
स्वाति बूँद बनकर मनमोहन मुझे तृप्ति दे जा रे।
मन व्याकुल हो तुझे पुकारे आ जा नन्द दुलारे॥
सुन गिरधारी तेरी राधा
है युग युग की प्यासी,
क्षितिज छोर तक जाना लगती
तुझ को बात जरा सी।
गगन मंडल में सेज बिछी है अब तो मुझे सुला रे।
मन व्याकुल हो तुझे पुकारे आ जा नन्द दुलारे॥