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मन स्वयं को दूसरों पर होम कर दे / कमलेश भट्ट 'कमल'
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मन स्वयं को दूसरों पर होम कर दे
माँ हमारी भावना तू व्योम कर दे !
ज्योति है तू ज्योत्सना का वास तुझमें
फिर अमावस से विलग तम तोम कर दे !
कुछ नहीं, कुछ भी नहीं तुझसे असम्भव
तू अगर चाहे गरल को सोम कर दे !
तू सनातन स्नेहमयि माँ, चिर तृषित हम
नेहपूरित देह का हर रोम कर दे !
धन्य हो जाए सृजन की पूत वीणा
माँ कृपा कर तू स्वरों को ओम कर दे !