भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन / अंशु हर्ष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा मन
जो अनवरत चलता रहता है
विचारों का सैलाब लिए
बिना ठहरे बिना थके
मीलों दूर सदियों तक
अ मन होने की दौड़ में
लेकिन मन क्या ठहराव पाता है ?
क्योकि जब मन ठहर जाता है
तो मन कहाँ रह पाता है
अ मन हो जाता है
तब एक अनुभूति होती है
आत्मतत्व की पहचान की