ममता की प्रतिमूर्ति मां / साधना जोशी
जननी जन्म दात्री पालक-पोशक,
ममता की प्रतिमूर्ति ।
वात्सल्य रस छलकाने वाली,
मां की भूमिका इस धरा पर,
सबसे अनोखी ।
स्व रक्त से जो सिंचित करके,
नव अंकुर का प्रस्फूटन करती।
तन-मन की हर वेदना को,
खुषी-खुषी सहन कर जाती ।
सापनों की चादर में भी,
बच्चों के ही सपने चुनती ।
पल-पल अपने सर्म्पित करके,
गृहस्थ नैया को चलाती ।
कौड़ी-कौड़ी जोड़ के,
भूख-प्यास को भुलाकर ।
संसार के थपेड़ो से बचाकर,
अपने को आगे बढाती ।
अवला बनी अपनी भूमिका के लिए,
जीवन के जहर को सहज ही पी जाती ।
कभी चण्डिका कभी षेरनी,
अपने पाल्यों के लिए ही बन जाती।
बाल पन की बाल क्रियायें,
जननी के तन-मन को हरती ।
जीवन की षत-षत खुषियां,
अपनों पर न्योछावर करती ।
स्पर्ष भी सुखकर,
दृश्टी प्यार बरसाने वाली ।
गोद में अमृत का सागर,
हाथों में चन्दन की षीतलता ।
धरा के हर रिषले न्यारे,
मां का नाता सबसे प्यारा ।
निस्वार्थ भाव से हर कश्ट उठाती,
मां आंचल से प्यार बरसाती ।
मां से कभी दूर न जाओ
मां ने सब को अपनाया
हम सब भी मां को अपनायें ।