मधुरस वाणी से झरे, ममता प्रीति दुलार।
नैन सहारे बह चले, छलके अंतस प्यार॥
रीति निराली नैन की, सुख दुःख पढ़ते भाव।
मन की पीड़ा बाँट ले, देती प्रीति निखार॥
भाषा होती प्रीति की, सभी भरे यह घाव।
भावों की गंगा सदा, बहती निश्छल धार॥
चितवन बाँकी चंचला, अजब करे संधान।
मृग नयनी निरख करे, जैसे वार कटार॥
छवि समायी नैन कहें, मन को करे सनाथ।
राधा मोहन प्रेम जो, कर ले जग उद्धार॥