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मया करिये कृपाल, प्रतिपाल संसार उदधि जंजाल तैं परौं पार / सूरदास

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 राग बिलावल

मया करिये कृपाल, प्रतिपाल संसार उदधि जंजाल तैं परौं पार ।
काहू के ब्रह्मा, काहू के महेस, प्रभु! मेरे तौ तुमही अधार ॥
दीन के दयाल हरि, कृपा मोकौं करि, यह कहि-कहि लोटत बार-बार ।
सूर स्याम अंतरजामी स्वामी जगत के कहा कहौं करौ निरवार ॥

भावार्थ :-- (ब्राह्मण कहता है-)`हे कृपालु ! मुझ पर कृपा कीजिये और मेरा पालन कीजिये, जिससे इस संसार-सागर रूपी जंजाल में पड़ा मैं इसके पार हो जाऊँ । किसी के आधार ब्रह्मा जी हैं और किसी के शंकर जी; किंतु प्रभो! मेरे आधार तो (एक) आप ही हैं । हे दीनों पर दया करने वाले श्री हरि! मुझ पर कृपा कीजिये । श्यामसुन्दर ! आप अन्तर्यामी हैं, जगत के स्वामी हैं, आपसे और स्पष्ट करके क्या कहूँ ।' सूरदास जी कहते हैं कि यह कहता हुआ वह (ब्राह्मण आँगन में) बार-बार लोट रहा है ।