भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मया बिन जग अँधियार / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
चिरई चींव-चींव बोले, हाँ बोले रे, मया बिना जग अँधियार
हाँस ले, गा ले, मन ल मिला ले, जिनगी के हवे दिन चार
कोनो नई देखय तोर धन-दोगानी ल।
महल-देऊर, खेत-खार, परवा छानी ल॥
मयारू मन सुरता राखे गरतर बानी ल
चिरई चींव चींव....
अंजोर हवय जइसे संगी तेल बाती दिया ले,
पिरित के गोठ संगी ससन भर गोठिया ले।
मया हे अमोल मया ल जिनगी म मोलिया ले
चिरई चींव चींव....
जुग-जुग ले हवय जग में मया के मान
पिरित बिन जनम बिरथा दुनिया बिरान।
मया तुलसी के दोहा, कबीर मीरा के गियान
चिरई चींव चींव....